आखरी टुकड़ा कॅडबरी का,
पानी पूरी की एक प्लेट,
वह गर्मी के दिनों में,
पानी का आखरी घूँट,
मिल के बांटना ही आधा-आधा,
करता था उन लम्हों को पूरा|
सुनूँ मैं अनचाहा गाना,
क्यों कि तुझे वह रिझाये,
तुम चलो दोस्तों के साथ,
क्यों की दोस्त हैं वो मेरे,
मिल के करें समझौता आधा-पौना
और ढूंढें “पूरा” साथ-साथ|
कुछ मुस्काने मुझे तुम देते,
कुछ सर्दियां तुम्हारी मैं सेकूँ,
मिल के अधूरी बातें की कितनी प्यारी,
भरे हिस्से हल्के से थे जो खाली|
घांव तुम्हारा दिया हुआ पूरा फिर,
क्यों भर रही हूँ मैं अकेली?
मिल बाँटने के लिए बराबर,
क्या मुझे भी तुम्हें चोट देनी होगी?
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