अकेले?
कैसे कहें खुद को अकेला,
जब रहतें है उनके ही साथ,
हमेशा?
कब होता है पल अकेला?
जब ख़यालो में न आयें,
हम उन के?
हाँ, उस ख्य़ाल बिना है मन अकेला.
बात हुई कोई, जो बतायें किसी को,
तो मन हो जाए हल्का शायद,
पर ढूढ़ें हम, सिर्फ एक उन्हें
उनका छूना, गीला गाल बाँया,
उनका चूमना, नम पलकें मूंदी,
उस के बिना है मन अकेला.
बात भीड़ की नहीं, न अकेलेपन की,
बात अपनों की नहीं, हैं वो कई,
बात है सिर्फ इस बांवले से मन की,
जो चाहे एक, और सिर्फ एक की नज़र,
उस के बिना है मन अकेला.
हैं वो नहीं, तो है मन खाली सा,
है ‘गर उस का खय़ाल तो
अकेलेपन में ही है ख़ुशी,
पर उस के बिना है मन अकेला.
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