मेरी बातों में खुद को न खोज, ऐ दीवाने,
कहीं हर लफ्ज़ में खुद को पा के परेशान तू न हो जाए।

मुस्कुराता देखना चाहते तो हो मुझे तुम हर दम,
पर क्या हो, अगर हर मुस्कान की वजह तुम हो जाओ।

मेरे पीछे से, हर कदम पर मेरे सलामती हो चाहते,
बस पलट के कहीं तुमको देखता हुआ मैं न देख लूं।

खैरियत मेरी तुम जानना हो चाहते कभी कभी,
खैरियत तुम बिन भी है मेरी, सुनना पर मुश्किल है ज़रा।

बेशक होगा ये खेल नपे-तुले से किसी रिश्ते का,
कैसे कर लेते हो तुम, आधी-अधूरी सी ऐसी चाहत।