क़यामत की बला है ये नींद,

जब कभी मायूस गुज़रता है दिन,

नहीं आती कि, “क्या कमी थी?”

अौर जब खुशी के कुछ पल हो हो दिन में,

पलकें मूंदने की तबियत नहीं बनती